मरती इंसानियत
सारे जमीन को बाट दिया है, जाती के नाम पर, क्षेत्र के नाम पर, धर्म के नाम पर. ऊपर वाले ने एक जमीन बनाई थी. बटवारे के नाम पर दंगे होते हैं, जिसमे सिर्फ बेकसूर मारे जाते हैं. किसी का दोस्त मरता है, किसी का भाई, किसी का बेटा, किसी का पति. एक जिन्दगी खत्म हो जाने से कितने ही रिश्तों की मौत हो जाती है.वो चला था सफ़र पे कुछ सपने लिए,
"कर सकूँगा कुछ अपने कुछ सबके लिए".
माँ बाबा का अपने वो विश्वास था,
बुढ़ापे के उनकी वो एक आस था.
थी बहिन की भी डोली सजानी उसे,
फ़र्ज़ राखी की थी तो निभानी उसे.
दोस्त यारों में भी वो तो मशहूर था,
हर किसी के लिए वह तो एक नूर था.
जा पहुंचा वो अनजान एक देश में,
थे दरिन्दे जहा इंसान की वेश में.
कर दिया दरिंदों ने इंसानियत तार तार,
ढाए उसपे सितम कर दिया उसपे वार.
गिर गया वो जमीन पे तड़पने लगा,
था दिया जो किसी को वो बुझने लगा.
सो गया वो बिचारा सदा के लिए,
वो चला था सफ़र पे कुछ सपने लिए.
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