Tuesday, February 16, 2010

बचपन के दिन

बचपन के दिन
बचपन के दिन थे बहुत भोले भाले,
न गम थी, ना हम थी, हम थे मतवाले।
न धर्म,जाती, रिवाजों की बेडी पड़ी थी,
हर गली हर डगर खूब फेरी लगी थी।
धूप भी हमको तब तो सुहानी लगी थी,
मन लुभानी वो बारिश की पानी लगी थी।
सुख की दुःख की ना परवाह करते थे हम,
बन के स्वछन्द पंछी विचरते थे हम।
गोधुली की सभा भी निराली सजी थी,
मन का राजा कोई मन की रानी बनी थी।
हर किसी में एक बच्चे को पाते हैं हम,
देख उसको सभी गम भुलाते हैं हम।
बच्चे बच्चे में खुद की ही पाते हैं हम,
साथ उसके ही बचपन में लौट जाते हैं हम।