Wednesday, April 7, 2010

हाथ की लकीरें

हाथ की लकीरें

हाथ की लकीरों में क्या लिखा है कौन जानता है?

तुम हमें मिलोगे,
अपना बनोगे,
हरपाल मेरा साथ निभाओगे,
या यादों के सहारे जिंदगी गुजर जाएगी, कौन जानता है?

पेड़ से पत्तों की तरह,
बिखर जाती हैं खुशियाँ,
बस साख लिए खड़े हैं तपती धुप में,
इस पतझड़ के बाद बसंत आएगा या नहीं, कौन जानता है?

उगा था एक पौधा,
कुछ हसरत लिए,
जुल्म सहता हुआ खड़ा है वो,
वो पेड़ बन पायेगा या टूट जायेगा, कौन जानता है?

जो सपने सजाये थे हमने,
तुम्हरे साथ दुनिया बसायेगे ,
सपने सच होंगे,
या एक अधुरा ख्वाब बन के रह जायेगे, कौन जानता है?

संवर जाती जिंदगी हमारी,
तुम्हे भी दे सकूँ खुशियाँ सारी,
हासिल होगी कामयाबी,
या खुद लिखनी पड़ेगी अपनी बरबादियों की कहानी, कौन जानता है?

जिंदगी में लोग आये,
सबसे हमने दिल लगाये,
उनकी तरह तुम भी छोड़ जाओगे,
या हमारी हाल पे मुस्कुराओगे, कौन जानता है?

जीवन पे काली घटा छाई है,
सारी फिजा अँधेरे के आगोश में समाई है,
इन अंधेरों में खो जायेगे हम,
या सुनहरा सवेरा होगा, कौन जानता है?

जीवन के साथ खेल खेलती हैं ये लकीरें,
कभी सुख कभी दुःख देती हैं,
हर पल रंग बदलती हैं ये लकीरें,
क्या होगा अगले पल में, कौन जानता है?

हाथ की लकीरों में क्या लिखा है कौन जानता है?